छत्तीसगढ़ कांग्रेस का संगठन आज जितना कभी कमजोर नहीं रहा

राजिम :- छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की दुर्गति का जो हाल आज बना है वैसा कभी नहीं रहा. साल डेढ़ साल पहले तक स्थानीय निकायों और त्रिस्तरीय पंचायत के चुनावों में कांग्रेस को ऐसी मुह की खानी पड़ेगी इसकी कल्पना भी किसी को नहीं रहा होंगा. सत्तासीन भाजपा तक ने ऐसी दुर्गति की कल्पना कांग्रेस के लिए नहीं की होगी कांग्रेसियों की तो बात ही और है. आखिर क्या कारण रहा ऐसे चुनाव परिणामो की जिसकी समीक्षा तक करने की कांग्रेसियों में हिम्मत नहीं बची है. क्या भ्रष्टाचार के अनगिनत काले कारनामों में कांग्रेस के नेताओं की सीधी भूमिका जनता देखती है. कांग्रेस का कोर वोटर तक कांग्रेस के साथ इस बार खड़ा नहीं रहा और वह छिटक कर दूसरे पाले में चला गया. जिसके मूल में आखिर कारण क्या रहे? यह सवाल आज कांग्रेस को ढूँढना ही होंगा नहीं तो तानाशाही का दूसरा दौर प्रदेश की जनता देखेगी.

यह सच है की कांग्रेस के पास आज दूरदर्शी और अनुभवी के साथ सक्रिय राजनीतिज्ञों का अभाव है. क्या नंद कुमार पटेल, महेंद्र कर्मा और वी सी शुक्ला जैसे कर्मठ नेताओ की नरसंहार से उपजा है यह संकट? यह बात तो सभी मानते और जानते है बावजूद कांग्रेस कभी नेतृत्व संकट के इतने कठिन दौर से गुजरेगा यह कल्पना से परे मालूम पड़ता है. भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव की अपनी अपनी महत्वाकांक्षा कांग्रेस को ले डूबेगी यह हो नहीं सकता. यदि ऐसा हुआ तो राज्य में किसी तीसरी पार्टी को खड़ा करना पड़ेगा. आज भाजपा और उसके नेता जितने निरंकुश होते जा रहे है उससे तो किसी अनहोनी की आहट और पदचाप स्पष्ट सुनाई और दिखाई दे रही है. कांग्रेस का यू मिट जाना छत्तीसगढ़ और लोकतंत्र के हित में कतई सही नहीं कहा जा सकता है.

आदिवासी बहुल गावों और पंचायतों में कांग्रेस का पैर उखड़ जाना इस सदी की बड़ी अनहोनी घटनाओं में से एक है. लोकसभा और विधानसभा के चुनावों की बात और है, नगरीय निकायों की भी बात को और में लिया जा सकता है लेकिन त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव में कांग्रेस का यू बिना लड़े समर्पण कर देना दिशाहीनता ही नहीं नेतृत्वहीनता की पराकाष्ठा और चरम है जिससे कांग्रेस को निकाला जाना चाहिए. डायनेमिक लीडरशिप का आज कांग्रेस में नितांत अभाव है जिसका कारण स्वयं कांग्रेसी ही है. सारे महत्वकांक्षी आज मुझे क्या की तर्ज पर घर बैठ गए है और प्रत्याशीओ को उनके हाल पर छोड़ दिया गया जिसका परिणाम तो यही आना ही था इसमें आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए. बावजूद सवाल यहाँ कांग्रेस का नहीं होकर छत्तीसगढ़ और लोकतंत्र का है. राज्य में विपक्षी पार्टी के रूप में कांग्रेस की भूमिका बहुत बड़ी है जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है. लेकिन जड़ो पर मठ्ठा डालकर कोई कब तक जिंदा रह सकता है सवाल इसका है. संपन्न त्रिस्तरीय पंचायत में ऐसा होता स्पष्ट दिखा है.

कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व भी अपने संकटों से पार पाने में स्वयं असमर्थ जान पड़ता है तो वो कैसे छत्तीसगढ़ कांग्रेस को इस गर्त से बाहर निकालें समझना मुश्किल है. अहंकार त्याग कर कांग्रेसी एकजुट हो यही आज समय की पुकार है और यदि इस पुकार को भी अनसुना कर दे तो फिर कहना ना होंगा कि भगवान मालिक.

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