तथाकथित राम-लक्ष्मण की जोड़ी की चर्चा ने राजिम क्षेत्र की चुनावी फ़िजा का बढ़ाया तापमान

राजिम :- राजिम विधानसभा क्षेत्र में इन दिनों राम और लक्ष्मण की चर्चा जोरो पर है. इसलिए नहीं की राजिम कुंभ कल्प मेला में कही से उनका अवतार या प्रगटीकरण होने वाला है बल्कि इसलिए की इन दिनों सत्तापक्ष के कुछ नेताओ को, अमूमन पद में होने पर ऐसा गुमान अक्सर हो ही जाता है पार्टी कोई भी क्यों ना हो वैसा ही भारतीय जनता पार्टी के सत्तासीन नेताओ को आये दिन ऐसा सपना आते ही रहते है जिसमे की वायरल विडियो में राम रावण और हनुमान के दर्शन तो प्रदेश की जनता कर ही चूकी है. इन दिनों राजिम क्षेत्र में एक राजनैतिक नेता जो सत्तापक्ष का प्रतिनिधित्व करते है उन्हें स्वयं भगवान राम होने का भ्रम हो गया है और अपने साथी का लक्ष्मण के रूप में परिचय कराया जाना प्रभु श्रीराम पर आस्था रखने वालों के आस्था के साथ खिलवाड़ ही नहीं धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाला भी प्रतीत होता है.

पिछले 7000 सालों से अधिक समय से अनेको लोगो ने राम बनने की चेष्ठा की है लेकिन आजतक कोई सफल नहीं हुआ और तो और पिछले 5000 सालों से कृष्ण,  2500 सालों से बुद्ध और महावीर ही नहीं 2000 सालों से क्राइस्ट होने की अनंत कोशिशे और नक़ल तक की गई है लेकिन परमात्मा की फैक्ट्री में दुबारा कोई निर्माण नहीं हो सकता है इस तथ्य से शायद अब तक भारत के राजनीतिज्ञ और धर्माचारीयों का एक समूह अनजान मालूम पड़ता है. परमात्मा दुबारा किसी हो नहीं बनाता है इस तथ्य को जितनी जल्दी हो सके हृदयगम कर ले भारत और भारतीयों का भला ही होंगा ऐसा इस पंक्ति के लेखक का अपना विचार है जो सत्य के काफी करीब भी लगता है.

अब रही बात इस भ्रम को तोड़ने की तो उसके लिए हर पांच सालों में एक बार जनता की अदालत यानि चुनाओ में जनता इस भ्रम को अच्छे से तोडती ही है इसमे कोई दो राय नहीं हो सकता है. तो उन नेताओ को जिन्हें राम और लक्ष्मण होने का भ्रम हो गया है अभी पंचायत के चुनाव चल रहे है जिसमे तथाकथित लक्ष्मण की अग्निपरीक्षा हो जाएगी और साथ ही 2028 में तथाकथित राम की भी हो जाएगी. समय और नियति पर यह निर्णय छोड़ देते है की कौन क्या है. चुनाव को हमरे नेताओ और जनप्रतिनिधियों को लोकतंत्र के उत्सव के रूप में लेना चाहिए ना की राम रावण युद्ध या महाभारत युद्ध की तरह. लोकतंत्र की जीवंतता बनी रहे इसलिए सभी को अपनी आहुति लोकतंत्र के इस महायज्ञ में देते रहना चाहिए. अहंकार चाहे रावण का हो या दुर्योधन का एक दिन चूर-चूर होना तय है इसलिए धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने से हमारे राजनेताओं को बचने की पूरी चेष्ठा करनी चाहिए. लेकिन पद का अहंकार से आज तक कोई भी बच नहीं पाया है यह भी एक कटु सत्य तो है ही जिससे मुह नहीं मोड़ा जा सकता है. साधारण से असाधारण होने का जो और विशिष्ट से अति विशिष्ट होने का जो नशा है उसी का नाम तो राजनीतिज्ञ है. इसलिए इसमे हमें कोई दोष भी नहीं दिखाई देता है. काल के प्रवाह में सभी बह जाते है बस धैर्य पूर्वक देखने की कला आनी चाहिए.

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