धन पद और प्रतिष्ठा धन पद और प्रतिष्ठा की ही दौड़ ही है जो इंसानों को जीवंत और प्रगतिशील रखा है

राजिम :- धर्माचारी या कोई और चाहे लाख कहे की यह युग कलयुग है कोई फर्क नहीं पड़ता. धन पद और प्रतिष्ठा सभी युगों में बराबर का महत्त्व रखते आया है. सतयुग त्रेतायुग और द्वापरयुग ही नहीं तथाकथित कलयुग सभी समय में मानवीय मूल्य और गरिमा की दुहाई दी जाती रही है इसका मतलब की युग कोई भी क्यों ना हो समाज एक जैसा ही रहा है यह तो तय है. नहीं तो तब क्यों आदर्श की परिभाषा गढ़ी जाती? मानवीय मूल्यों को जीवंत बनाये रखने तब लाख जतन किये गए. महाभारत काल के कथा-कहानियों और किवदंतियों में यही सब होता दिखता है जो प्रमाण है समय चाहे कोई भी हो समाज हमेशा एक ढर्रे में संचालित होते आया है. इसलिए आज के मनुष्यों के लिए अलग से परिभाषा गढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है. धन पद और प्रतिष्ठा की दौड़ आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कभी रहा होंगा और तब तक रहेगा जब तक मनुष्यता जिंदा है. समाज का जीवन दर्शन ना कभी बदला है ना कभी बदलेगा ऐसा ही जानना ज्यादा श्रेयस्कर होंगा.

आज का मनुष्य भी धन पद और प्रतिष्ठा की तीब्रतम गति को प्राप्त करने लालायित है तो कोई आश्चर्यजनक नहीं होना चाहिए. समाज की शिक्षण का पूरा तंत्र का आज यही गुरुमंत्र और विज्ञान है. जिससे कोई भला अछूता कैसे रह सकता है. तथाकथित धर्माचारी भी इन्ही को प्राप्त करने लालायित दिखते है जो समाज के शिक्षण का ही परिणाम है. इसलिए समाज के किसी वर्ग से कोई अन्यत्र होने की उम्मीद पालना बेमानी होंगा. कहना ना होंगा की अध्यात्मवेत्तावों का एक बड़ा वर्ग इसके प्रभाव में आकर रास्ता भटक गया है और वे जिसकारण आज सिर्फ धर्माचारी मात्र बनकर रह गए है. जिसे विडंबना ही कहा जा सकता है.

भारत का समाज और कहे पूरब का समाज आज पश्चिम से किसी प्रकार भिन्न नहीं रहा है और यह प्रतिस्पर्धा निरंतर भारतीय समाज और पूरब के समाज को पश्चिम के करीब खड़ा कर रहा है. विज्ञान यानि विशेष ज्ञान के इस युग में समाज आज हलांकि नकलची ज्यादा हो गया है. स्वाभाव के अनुसार जीने की कला अब खो सी गयी है जिसे किसी तरह से पुनः प्रतिस्ठापित करने की आज नितांत आवश्यकता है जिस ज्ञान यज्ञ में इन पंक्तियों के लेखक का सादर आमंत्रण प्रेषित है जो भावपूर्ण हो, स्वस्थ हो उन्हें स्वाभाव में जीवन जीने की कला समाज में फैलाते रहना होंगा. और कालान्तर में उन्हें ही हम अध्यात्मवेत्ता की उपमा से नवाज पाएंगे. धन पद और प्रतिष्ठा के इतर भी जीवन का शास्वत सत्य बिखरा पड़ा है जिसे समेटने की आज अति आवश्यकता है. और जिसे समेटकर नयी पीढ़ी के सुपुर्द करने की महति जिम्मेदारी आज हमारे कंधे पर आन पड़ी है. आज समय की यही पुकार है.

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