दिल्ली का दंगल दिल्ली में केजरीवाल और आप पार्टी सरकार की विदाई के साथ विकल्प वाली स्टार्टअप का अंत
- by 36Garh Mahtari News --
- 27 Feb 2025 --
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राजिम :- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अंतर्गत आने वाले दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अरविंद केजरीवाल की पार्टी और खुद अरविंद केजरीवाल का चुनाव में हार जाना कोई अनहोनी घटना तो नहीं है क्योकि चुनावी राजनीति में हार और जीत तो होते ही रहते है. और इसलिए भी इसे अप्रत्याशित नहीं मान सकते क्योकि जिस दिन अरविंद केजरीवाल की शराव घोटाले में गिरफ्तारी हुई थी उसी दिन से आप पार्टी का और उसके मुखिया केजरीवाल की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी. 8 फरवरी को तो सिर्फ उसमे मुहर लगी है.
सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और अरविंद केजरीवाल ही नहीं दर्जनों विधायकों की गिरफ़्तारी विगत दशक भर में होती रही जिसे केजरीवाल और उसके समर्थक बदले की राजनीति बताते हुए सिरे से ख़ारिज करते रहे और खुद को कट्टर ईमानदार बताते फिरते रहे. जिस बुनियाद पर पार्टी अस्तित्व में आया था उसी बुनियाद पर अरविंद केजरीवाल और उसके पार्टी के नेता झूठ पर झूठ बोलते हुए मठा डालते रहे. भष्टाचार मिटाने की कसम खाते और कसम खिलाते हमेशा बदनीयती स्पष्ट दिखती थी. क्योकि कुछ करने की जब आन्तरिक पीड़ा हो तो महज लफ्बाजी से लोगो को नहीं बरगलाया जा सकता है जीकर दिखाना होता है तब कही जाकर विश्वास अटूट बनता है.
झूठ की राजनीति का जैसा अंत होना चाहिए बिल्कुल ठीक वैसा ही दिल्ली में देखने मिला है. कहा कुछ जा रहा हो और किया कुछ जा रहा हो और जब कथनी और करनी में तालमेल ना खाए तो एक दिन यही होता है जो केजरीवाल के साथ हुआ. केजरीवाल की कथनी और करनी में जमीन और आसमान जैसा अंतर था जो अनेक मौको पर प्रगट रूप में देखा गया जिसे जनता समझने और मानने लगी और यही केजरीवाल के गर्त में जाने का कारण साबित हुआ.
भाजपा कोई दूध की धुली पार्टी तो नहीं है बावजूद सफ़ेद झूठ बोलने से पार्टी और उसके नेता बचते देखे जा सकते है. कभी प्रमोद महाजन सफ़ेद झूठ बोलते थे. आज सोशल मिडिया के जबाने में भाजपा खुद को इससे बचाकर रखी है जिसमे पार्टी नेतृत्व की भूमिका अहम है. जीवन जीकर दिखाने की हैसीयत आज के भाजपा नेतृत्व की खासियत है जो उसे सबसे अलग बनती है. बाकी तो पार्टियों में और राजनीति में जो होता है वही सब यहाँ भी है. राजनीति का विदुप्र चेहरा कभी भी बाहर आ सकता है इससे सावधान रहने की अति अवश्यकता है. अरविंद केजरीवाल और उसकी पार्टी ने यही सावधानी नहीं बरती क्योकि वे हद दर्जे के बेईमान और अहंकार को अपने अंदर पाल रखे थे जिसका ही परिणाम उन्हें मुह की खाकर चुकानी पड़ी है. विकल्प की राजनीति परोसने का दावा करने वाली इस स्टार्टअप का यही अंत होना ही था सो हुआ भी.
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