सावधान, यह मूल्यों के हास् का युग है ! चालाकी आज सफलता की योग्यता है !!

राजिम :- शास्त्रों में हमारे इस युग को कलयुग की उपमा दी गई है जो निष्पक्ष दृष्टि से देखे तो सत प्रतिशत सही मालूम पड़ता है. कलयुग का मतलब विश्वास के संकट का दौर तो है ही, बेईमानी और चालबाजी ही नहीं, यहाँ सफल होने के लिए धूर्तता की अंतिम सीमा तक गिरना स्वाभाविक जान पड़ता है. ना सिर्फ राजनीति बल्कि सामाजिक और पारिवारिक सरोकार के विषय में भी यही सब होता दिख रहा है. ना सिर्फ दिख रहा है बल्कि अपने चरम पर पहुचता मालूम पड़ता है. कलयुग का मतलब झूठे का बोलबाला से भी है जिसे सर्वत्र देखा जा सकता है और उसके लिए किसी चश्मे (नजरिया) की जरुरत नहीं है. आज का समाज मानव मूल्यों के गरिमा के हास् का युग है जिसे कोई भी निष्पक्ष दृष्टि से देख और मह्सूस कर सकता है. चालाकी आज योग्यता बन गया है सफलता का.

      अर्थ प्रधान इस युग में सर्वत्र धन और धनी की पूजा हो रही है जिसकारण लोग धन को प्राप्त करने साम दाम दंड भेद सभी की नितियों का अनुसरण करने कुछ बाकी छोड़ रखना नहीं चाहते. मनुष्य होने का बोध और गरिमा आज धन प्राप्ति के मार्ग में बाधा बन गई है. ना सिर्फ राजनीतिज्ञ और तथाकथित धर्माचारी बल्कि आम जनमानस में यह भावना घर कर गई है जो समाज को रसातल में ले जाने उतावले नजर आते है. कोई कैसे पार पाये इन पीड़ाओ से क्योकि कोई मार्ग धूर्तो ने खाली नहीं छोड़ा है. अध्यात्म का मार्ग विशुद्धतम मानव जीवन के गरिमा के अनुकूल है बावजूद आज धार्मिक लोग अध्यात्मिक होने का ढोंग रचाये बैठे है जिससे इधर कुआं उधर खाई वाली बात चरितार्थ होता मालूम पड़ता है.

      भगवान बुद्ध ने अकारण ही मनुष्य के जन्म को ही दुःख का कारण नहीं बताया था उन्हें भी भान तो रहा ही होंगा. आज तो भगवान कृष्ण की गीता और अष्ठावक्र की महागीता भी नदी के दो तटो की तरह से असहाय जान पड़ता है जिसमे मूल्यों के हास् का यह उफान अपनी सारी सीमा लांघने उददीग्न जान पड़ता है. आज कबीर नानक मीरा रामकृष्ण ही नहीं गोरखनाथ और पतंजलि के साथ राम कृष्ण बुद्ध महावीर क्राइस्ट और मोहम्मद सभी के सभी अनुयायी एक से व्यव्हार कर रहे है जो गौर करने वाली बात है. सभी राजनीति को नीति मान बैठे है जो एक बड़ी विडम्बना है जिससे पूरे विश्व राष्ट्र में तूफान मचा हुआ है. एक ही नाव में सवार सभी मानवता के पोषक अपने अस्तित्व को बचाने आज जद्दोजहद कर रहे है जो कम अचरज की बात नहीं. देखना होंगा मूल्यों के हास् के इस युग में मानवता को कहा ठिकाना मिलता है. कलयुग का एक निहितार्थ कल का नहीं होना भी तो हो सकता है.

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